जन अधिकारों का हो रहा उल्लंघन,  उपायुक्त से हुई शिक़ायत

चाईबासा :  खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम का एक प्रतिनिधिमंडल ज़िले के  उपायुक्त अनन्य मित्तल से मुलाकात  किया। तथा  जन अधिकारों के लगातार हो रहे उल्लंघन पर चिंता जताया। साथ ही उपायुक्त से मांग की गई कि  कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचाई जायें। उपायुक्त को सौंपे गए ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि विभिन्न विभागों में सौंपे गए ज्ञापन पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।  कई प्रखण्डों (सोनुआ, तांतनगर, मंझरी, खूंटपानी आदि) से बकाया मनरेगा मजदूरी भुगतान व बेरोज़गारी भत्ता का आवेदन कई बार प्रखण्ड व उपविकास आयुक्त को दिया गया है। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।  मंच ने मांग किया कि मनरेगा मज़दूरों को मुआवज़ा सहित लंबित भुगतान एवं बेरोज़गारी भत्ता का भुगतान सुनिश्चित किया जाए। 

प्रतिनिधिमंडल ने ज़िले के आंगनवाड़ी सेवाओं की दयनीय स्थिति को भी साझा किया। मंच के सर्वेक्षण में पाया गया था की  केवल 55% आंगनवाड़ी केंद्र नियमित रूप से खुलते हैं एवं केवल 55% केन्द्रों में सेविका नियमित रूप से उपस्थित रहती है. केवल 17% केन्द्रों में ही बच्चों को नियमित रूप से शिक्षा मिल रही है. अनेक केन्द्रों में सिर्फ हल्दी, चावल और थोड़ी  सी दाल मिलाकर खिचड़ी  पकाया जाता है। और वही परोसा जाता है।

उपायुक्त का ध्यान इस ओर भी आकृष्ट कराया  गया कि ज़िले में पीसीसी सड़क, भवन निर्माण, नल-जल योजना, डीएमएफ़ योजना में मजदूरों को न्यूनतम मज़दूरी दर नहीं दिया जा रहा है। कई बार इससे संबन्धित शिकायत भी की गयी है लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। इस पर तुरंत कार्यवाई की ज़रूरत है। 

मंच ने वर्तमान में चल रहे बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र अभियान में हो रही समस्याओं को भी साझा किया। 30 दिनों के पहले हुए जन्म के लिए कोर्ट से एफ़िडेविट मांगा जा रहा है जो सुदूर गावों के लोगों के लिए बनवाना बहुत मुश्किल व महंगा है। 1-5 कक्षा के बच्चों के लिए जन्म प्रमाण पत्र को अनिवार्य बोला जा रहा है जिसके कारण अनेक बच्चे शिक्षा से वंचित होने के कगार पर हैं। प्रतिनिधिमंडल ने मांग किया कि साप्ताहिक प्रखंड स्तरीय कैंप का आयोजन किया जाए जिसमें मजिस्ट्रेट की नियुक्ति हो जो निःशुल्क एफिडेविट बनाकर दे। 
साथ ही, प्रतिनिधिमंडल ने ज़िला खनिज कोष (डीएमएफ़) को जनता की  मांग अनुरूप एवं पारदर्शी बनाने की मांग की। ज़िला में ज़िला खनिज कोष (डीएमएफ़) से 2300 करोड़ रु से अधीक जमा हो चुका है जिसका आधे से ज़्यादा खर्च हो चुका है. अभी तक इस कोष के इस्तेमाल में कई गंभीर समस्याएं दिखती हैं जैसे – 1) अधिकांश योजनाएं सामग्री विशेष और ठेकेदार आधारित हैं जिनमें अक्सर मजदूरों के शोषण की सूचना मिलती है एवं कार्यान्वयन में जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं होती है 
2) अधिकांश योजनाओं का चयन वास्तविक रूप से ग्राम सभा द्वारा नहीं किया गया है. अनेक मामलों में पूर्व से तय योजनाओं पर ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा फ़र्ज़ी सहमति ली जा रही है. 
3) योजनाओं के खर्च की जानकारी ग्राम सभा को नहीं दी जाती है। डीएमएफ़ के कार्यान्वयन में पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों व पेसा का व्यापक उल्लंघन होता है। 
मंच ने मांग किया कि डीएमएफ का इस्तेमाल मुख्यतः कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा व रोज़गार के मुद्दों के निराकरण के लिए हो न कि केवल भवन, सड़क निर्माण कार्यों व ठेकेदारी के लिए‌  साथ ही, डीएमएफ को कोष ग्राम सभा व ग्राम पंचायतों को दिया जाए ताकि वे योजनाओं का कार्यान्वयन कर सकें । 
प्रतिनिधिमंडल में हेलेन सूँडी, जयंती मेलगंडी, कमला दास, मानकी तुबिड, नारायण कांडेयांग, संदीप प्रधान, रामचंद्र माझी समेत मंच के कई कार्यकर्ता शामिल थे।